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उत्तराखंड ग्लेशियर का पतन: झारखंड सरकार ने जारी किए हेल्पलाइन नंबर, मनोज झा बोले- प्रकृति के शोषण की सीमा तय हो

उत्तराखंड ग्लेशियर का पतन: झारखंड सरकार ने जारी किए हेल्पलाइन नंबर, मनोज झा बोले- प्रकृति के शोषण की सीमा तय हो

उत्तराखंड ग्लेशियर का पतन: झारखंड सरकार ने जारी किए हेल्पलाइन नंबर, मनोज झा बोले- प्रकृति के शोषण की सीमा तय हो

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उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से मची तबाही को लेकर बिहार और झारखंड राज्य में भी चिंताएं जाहिर की जा रही हैं।

चमोली में ग्लेशियर टूटने से मची तबाही में अबतक 19 शव बरामद किए जा चुकें हैं। अभी भी करीब 170 लोगों के मलबे में दबे होने की आशंकाएं हैं। मौके पर एनडीआरएफ, आईटीबीपी और एसडीआरएफ की टीमें लगातार बचाव और राहत कार्यों में जुटी हैं।

जिनमें कुछ लोग झारखंड राज्य के रहने वाले मजदूर भी हो सकते हैं। इस बात से चिंतित झारखंड सरकार ने भी हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं। इन हेल्पलाइन नंबरों पर संपर्क करके चमोली (उत्तराखंड) हादसे में फंसे लोग मदद मांग सकते हैं।

मनोज झा बोले- प्रकृति के शोषण की सीमा तय हो

इस संबंध में झारखंड सरकार की ओर से लेटर जारी किया गया है। झारखंड सरकार की ओर से पत्र में लिखा गया है कि उत्तराखंड के चमोली ग्लेशियर आपदा से घबराएं नहीं। साथ ही अपनी समस्याओं को साझा करके सुरक्षित रहें।

सरकार ने कहा कि झारखंड के मजदूर, छात्र-छात्राएं एवं अन्य नागरिक यदि उत्तराखंड के चमोली हादसे में फंसे हैं। तो ऐसे लोग श्रम विभाग के स्टेट कंट्रोल रूप द्वारा जारी किए नबरों पर कॉल करके अपनी समस्याओं को साझा कर सकते हैं।

इसके लिए विभाग की ओर से वाट्सएप नंबर भी जारी किए गए हैं। इन नबरों पर वाट्सएप के माध्यम से संदेश भेजकर मदद मांगी जा सकती है। जारी नंबर कंट्रोल रूम इस प्रकार हैं- 1. 0651 – 2490055 2. 0651 – 2490058 3. 0651 – 2490083 4. 0651 – 2490052 0651 – 2490037

उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से मची तबाही को लेकर बिहार और झारखंड राज्य में भी चिंताएं जाहिर की जा रही हैं।

6. 0651 – 2490125 वाट्सएप नंबर- 1. 9470132591 2 9431336427 3. 9431336472 9431336432 हमें अपने विकास मूल्यों पर विचार करना चाहिए: मनोज झा उत्तराखंड के चमोली त्रासदी पर राजद नेता नेता मनोज झा ने भी चिंता जाहिर की है।

नेता मनोज झा ने कहा कि जिन परिवारों ने अपनों को खोया हैं। ईश्वर ऐसे परिवारों को शक्ति दें। यह आवश्यक है कि हमें अपने विकास के मूल्यों और प्रतिमानों पर विचार करना चाहिए।

प्रकृति का शोषण आप कहां तक कर सकते हैं। प्रकृति के शोषण की भी एक सीमा होनी चाहिए। इस तरह की चीजें दोबारा न हो उस पर भी हमें जरूर विचार करना चाहिए।

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